शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

संस्कृत को संबल देते ‘संस्कृत परिवार’


उत्कर्ष: भवान कथम अस्ति।
प्रणव: अहं सम्यक अस्मि।
उत्कर्ष: अस्मिन् वर्षे ग्रीष्मावकाशे अहम् आनन्दम् अकरोम्। तबलावादनम् अवगच्छम् अपि च केभ्यश्चित् दिनेभ्यः मातृपितृभ्यां भ्राताभगिनीभ्यां च सह नैनीतालं भ्रमणार्थम् अगच्छम्। भवान् किम अकरोत्? 
प्रणवः अहम् तु अवकाशेऽस्मिन् क्रिकेटक्रीड़ायाः प्रशिक्षणम् ग्रहणम् अकरोम्। कुत्रापित भ्रमणार्थं न अगच्छम। आगामिमासे विद्यालयस्य क्रिकेटदलस्य चयनं भविष्यति, अतएव केवलं क्रिकेटप्रशिक्षणे एव ध्यानं दत्तवान्। अहम् वांछामि यत् मम चयनमपि विद्यालयस्य क्रिकेटदले भवतु। 
संस्कृत में यह बातचीत कक्षा 6 में पढ़ने वाले उत्कर्ष तथा कक्षा 3 में पढ़ने वाले प्रणव की है। उत्कर्ष ने प्रणव से पूछा, आप कैसे हैं? प्रणव ने कहा मैं ठीक हूं। उत्कर्ष ने कहा इस साल गर्मियों की छुट्टियों में मैंने बहुत मजा किया। तबला बजाना सीखा और कुछ दिन के लिए माता-पिता और भाई-बहन के साथ नैनीताल घूमने गया। आपने क्या किया? प्रणव बोला मैंने तो इन छुट्टियों में क्रिकेट की कोचिंग ली, कहीं घूमने नहीं जा सका। अगले महीने स्कूल की क्रिकेट टीम का चयन होना है, इसलिए मैंने सिर्फ क्रिकेट की कोचिंग पर ही ध्यान दिया। मैं चाहता हूं कि मेरा चयन भी स्कूल की क्रिकेट टीम में हो जाए। 
          दो बच्चों के बीच की यह बातचीत संस्कृत की किसी किताब के अध्याय का हिस्सा नहीं है और न ही संस्कृत के किसी कार्यक्रम में प्रस्तुत किए गए संस्कृत के नाट्य का भाग, बल्कि यह दोनों बालक संस्कृत में बातचीत करते हुए साक्षात देखे गए। जिस तरह हम हिन्दी या अपनी प्रादेशिक भाषा में सहजता के साथ बातचीत करते हैं ठीक उसी तरह यह दोनों संस्कृत में बात कर रहे थे। केवल उत्कर्ष और प्रणव ही नहीं, अपितु इनके जैसे अनेकों बच्चे और उनके अभिभावक संस्कृत में बातचीत करते दिखाई दिए। यह दृश्य दिल्ली के कर्मपुरा में हुए संस्कृत परिवारों के मिलन का है। करीब 20 संस्कृत परिवार इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए, जिनमें बुजुर्ग, महिलाएं, और बच्चे सभी थे। इन परिवारों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा माना हुआ है और यह लोग घर में संस्कृत में ही बात करते हैं।
          ऐसे समय में जहां हर ओर अंग्रेजी का बोलबाला है और हर अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी बोलने में महारत हासिल कराना चाहता है। एक संशय मन में था कि कहां यह लोग अपने घरों में संस्कृत बोलते होंगे? लेकिन जब 2 साल की आदिश्री अपने पिता श्री विनायक हेगड़े के साथ संस्कृत में बात करते हुए दिखाई दी तो मन का सारा संशय समाप्त हो गया। जिस उम्र में बच्चा ठीक से बोलना भी नहीं सीख पाता, आदिश्री अपने पिता के साथ सहज होकर संस्कृत में बात कर रही थी। पिता-पुत्री की बातचीत दर्शा रही थी कि वास्तव में यह परिवार संस्कृत के प्रति गंभीर हैं और इसको बलवती बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। आदिश्री और उसके पिता की बातचीत कुछ इस तरह थी-
आदिश्री से बात करते हुए विनायक हेगड़े 

विनायक हेगड़े : बिडाल आगतः पश्यतु (बिल्ली आई देखो)  
आदिश्री : आम्-आम् बिडालः तृणं खादितुम् गतवान् (हां-हां बिल्ली घास खाने गई)
विनायक हेगड़े : न. न. बिडालः तृणं न खादति, सः मूशकं खादति (बिल्ली घास नहीं, चूहा खाती है)
आदिश्री : तात! वाताटं दर्षयतु (पिताजी मुझे पतंग दिखाओ)
संस्कृत के प्रति लगाव और इसे मातृभाषा बनाने तथा घर में संस्कृत में ही बातचीत करने के संबंध में श्री विनायक हेगड़े ने कहा कि हम भारतीय संस्कृति में विश्वास रखते हैं और भारतीय संस्कृति जितनी प्रबल है, उतनी शायद ही कोई और हो। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा से जितनी नैतिक शिक्षा मिल सकती है, उतनी किसी और भाषा से नहीं मिल सकती। और संस्कृत पढ़ने वाला बच्चा जीवन में कभी भी पिछड़ नहीं सकता,  क्यूंकि वह अनुशासित और संस्कारवान होता है। 



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