रविवार, 12 दिसंबर 2010

शास्त्रीय कला के नन्हे प्रेमी

राष्ट्रमंडल खेलों  के उद्घाटन समारोह में
तबला वादन करता हुआ बालक केशव
विगत 3 अक्तूबर, 2010 को नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में सम्पन्न हुए 19वें राष्ट्रमंडल खेल के उद्घाटन समारोह की देश-विदेश में खूब सराहना हुई। समारोह में प्रस्तुत किये गये भारतीय संस्कृति को दर्शाते हुये सांस्कृतिक कार्यक्रमों को तो दर्शकों ने पसंद किया ही, इसके अलावा 7 साल के बालक केशव द्वारा किये गये तबला वादन को भी लोगों ने खूब सराहा। नन्हे केशव ने तबला इतना कमाल का बजाया कि इसकी चर्चा समारोह के 2-3 दिन बाद तक रही। 7 साल के इस बालक द्वारा समारोह में सबकुछ भुलाकर तल्लीनता के साथ तबला वादन करने से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि आज की पीढ़ी में भी अपने देश की संस्कृति की पहचान शास्त्रीय गीत-संगीत और नृत्य के प्रति अपार जिज्ञासा है। जोकि इसे सीखना और समझना चाहती है।
    उद्घाटन समारोह में अपने तबला वादन से सबका मन मोह लेने वाला बालक केशव आरोविला (पांडिचेरी) के दीपरम् स्कूल में कक्षा- दो का छात्र है। वह दो साल की आयु से तबला बजना सीख रहा है। उसकी बहन 11 वर्षीय कामाक्षी भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रही है। हालांकि इन दोनों भाई-बहन को संगीत विरासत में मिला है। इनकी नानी श्रीमती प्रफुल्ला दानुकर जानी-मानी गायिका हैं। परन्तु फिर भी जिस आयु में बच्चे खेलने-कूदने, वीडियों गेम और न जाने किन-किन बातों में अपना समय बिताते हैं उस आयु में ये शास्त्रीय संगीत सीखकर अपनी संस्कृति का पोषण ही कर रहे हैं। लेकिन ऐसे बच्चों की भी देश में कोई कमी नहीं है जिन्हें शास्त्रीय गीत-संगीत और नृत्य विरासत में नहीं मिला, फिर भी वे पूरी लगन और तन्मयता से उन्हें सीख रहे हैं।

भरतनाट्यम की मनमोहक मुद्रा में
युक्ति और नंदिनी 

   राजधानी दिल्ली के पंजाबी बाग स्थित हंसराज मॉडल स्कूल में कक्षा 7 में पढ़ने वाली युक्ति और कक्षा 5 में पढ़ने वाली नंदिनी दोनों सगी बहनें हैं। दोनों ही पिछले 5 साल से दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य ‘भरतनाट्यम’ को सीख रही हैं। मूल रूप से तमिलनाडु की न होने के बावजूद भी इनका भरतनाट्यम के प्रति अपार प्रेम है। भरतनाट्यम के प्रति अपनी अथाह श्रद्धा के बारे में बताते हुये युक्ति कहती है कि हमारा देश बहुत बड़ा है और हमारे देश की पहचान विभिन्न प्रकार के शास्त्रीय गीत-संगीत और नृत्य हैं। मुझे अपने देष और संस्कृति से बहुत प्यार है, इसलिए मैंने और मेरी बहन ने भरतनाट्यम सीखने का निश्चय किया। वह कहती है कि शास्त्रीय नृत्यों को सीखने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए सभी को तो हम एक साथ सीख नहीं सकते। वर्तमान में बच्चों द्वारा सीखे जाने वाले आधुनिक नृत्य के बारे में बताते हुए युक्ति कहती है कि अगर कोई भी शास्त्रीय नृत्य हम अच्छी प्रकार से सीख लें तो ऐसे ‘डांस’ सीखने में हमें जरा भी समय नहीं लगेगा। युक्ति और नंदिनी के पिता श्री देवेन्द्र खन्ना जोकि एक सरकारी विद्यालय में शिक्षक हैं का कहना है कि बच्चों में अपने देश और संस्कृति के प्रति प्यार देखकर मैं बहुत खुष हैं। वहीं दक्षिणी दिल्ली के साकेत स्थित ज्ञान भारती विद्यालय की कक्षा 6 की छात्रा मेदिका शेखर पिछले 5 साल से उत्तर भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य ‘कथक’ की शिक्षा ले रही है। अब तक वह विभिन्न प्रतियोगिता और आयोजनों में अपने नृत्य की प्रस्तुति दे चुकी है। कथक के प्रति विशेष लगाव के बारे में बताते हुये वह कहती है कि मेरी ‘डांस’ में बहुत रुचि थी, मेरी इस रुचि को देखकर मेरे माता-पिता ने नजदीक के ‘डांस क्लासेज’ में मेरा दाखिला करा दिया। वहां अनेक प्रकार के शास्त्रीय नृत्य सिखाए जाते थे। मुझे कथक अच्छा लगा, इसलिए मैंने इसे सीखना शुरू किया। मेदिका ने कहा कि शास्त्रीय नृत्य हमारे ‘कल्चर’ (संस्कृति) से जुड़े हुये हैं, इसलिए इन्हें सीखने पर हमें अपने ‘कल्चर’ को जानने का मौका भी मिलता है।

ओडिसी नृत्य करती हुई
पीहू श्रीवास्तव
नोएडा के प्रसिद्ध एमिटी इंटरनेशल स्कूल की कक्षा 5 में पढ़ने वाली 11 साल की पीहू श्रीवास्तव विगत 6 साल से उड़ीसा के प्रसिद्ध नृत्य ‘ओडिसी’ को सीख रही है। पीहू का कहना है कि वह एक अच्छी ‘डांसर’ बनना चाहती है। पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार स्थित विवेकानंद विद्यालय की कक्षा 12 में पढ़ने वाला छात्र अमन ओबराय पिछले तीन साल से तबला और हारमोनियम सीख रहा है। अमन का कहना है कि सभी प्रकार के संगीतों का आधार शास्त्रीय संगीत ही है, इसलिए उसने कोई और वाद्य सीखने की बजाय तबला और हारमोनियम बजाना सीखना शुरू किया।
      वर्तमान पीढ़ी में शास्त्रीय कला की ओर बढ़ते रुझान पर प्रकाश डालते हुए प्रख्यात कथक नृत्यांगनाएं- नलिनी-कमलिनी, जोकि सगी बहनें हैं और भारत सहित विश्व के अनेक देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं तथा जिन्हें राष्ट्रपति सम्मान सहित ढेरों सम्मान मिल चुके हैं कहती हैं कि आज की पीढ़ी में शास्त्रीय नृत्य के प्रति बहुत रुझान है, यह केवल भारत ही नहीं अपितु विदेशों में भी है। विदेशों में इसके प्रति ज्यादा रुझान है, क्योंकि उनके लिए यह नया है। इस रुझान के पीछे का मुख्य कारण यह है कि जब वे अच्छे और तज्ञ कलाकारों को नृत्य करते हुए देखते हैं तो उनके मन में यह भाव उत्पन्न होता है कि वे भी ऐसा करें। इसके अलावा पारिवारिक संस्कार और संस्कृति के प्रति प्रेम भी इसकी ओर आकर्षित होने में प्रेरणा प्रदान करते हैं। लेकिन तज्ञ और अच्छा कलाकार बनने के लिए बहुत साधना करनी पड़ती है। जो साधना और मेहनत करने के लिए तैयार हो जाते हैं वे ही इसको सीख पाते हैं।

प्रख्यात कथक नृत्यांगनाएं
नलिनी-कमलिनी
वे कहती हैं कि शास्त्रीय नृत्य हमारी परम्पराओं से जुड़ा हुआ है, वह हमारी भारतीय संस्कृति और जीवन का अंग है। जिसमें हम पल्लवित हुए हैं। आधुनिक नृत्य हमारा नहीं है, क्षणिक बदलाव के लिए हम उसे जरूर अपना सकते हैं। उदाहरण के तौर पर हम कैसा भी खाना खा लें, वह हमें तृप्त नहीं कर सकता। लेकिन जब हम रोटी खाते हैं तो वह हमारी भूख शांत करने के साथ-साथ हमें तृप्त करती है, आनंदित करती है। इसलिए यदि हमें तृप्त होना है तो अपनी संस्कृति से जुड़ना होगा। क्योंकि हम उसी में पल्लवित हुए हैं। विदेशों में रहने वाले भारत के अनेक लोगों को अपने देश की कमियों के बारे में पता होगा, लेकिन फिर भी वे अपनी संस्कृति से जुड़े हुए हैं, क्योंकि उनको लगता है कि वह उनका देश है। नलिनी-कमलिनी कहती हैं कि सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति की अलग पहचान है। हमारी संस्कृति बहुत प्राचीनतम है। जिससे कुछ न कुछ शिक्षा ही मिलती है। इसलिए आधुनिक नृत्य बदलाव के लिए ठीक हैं, परन्तु वह भी कहीं न कहीं शास्त्रीय नृत्य से ही जुड़े हुए हैं। वैसे बच्चों को आप जैसा रूप देना चाहें, वे वैसा बन जाते हैं। उन्हें तराशना पड़ता है। इसकी शुरुआत परिवार से ही होती है। छोटे बच्चे वातावरण को देखकर सीखते हैं, उस पर परिवार के संस्कारों का बहुत प्रभाव पड़ता है। वे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, हम उन्हें जैसा तराशना चाहें तराश सकते हैं। हम जितनी संस्कृति निभाएंगे, बच्चे उतने ही संस्कार निभाएंगे। भारत और विदेशों में शास्त्रीय नृत्य को देखकर लोग खुश होते हैं, उनके मन में इसके प्रति बेहद सम्मान है। युवा तो इसकी बहुत सराहना करते हैं। वैसे अच्छी चीज हर किसी को आकर्षित करती है। सुंदर और बदसूरत में कोई भी अंतर कर सकता है। परन्तु अच्छा करने के लिए साधना करनी पड़ती है, मेहनत करनी पड़ती है। वे कहती हैं कि शास्त्रीय कला का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। जिस प्रकार सोने की चमक लंबे समय तक कम नहीं होती, उसी प्रकार शास्त्रीय कला को सीमा में नहीं बांधा जा सकता। इसकी पहचान विश्वस्तीय है। दिल्ली में हो रही रामलीलाओं में हर प्रकार के लोग आते हैं, गरीब से गरीब भी और अमीर से अमीर भी। सब लोग रामलीला के बारे में जानते हैं, हर वर्ष देखते हैं फिर भी इसके दर्शकों की संख्या में कमी नहीं होती। और जब भारत की संस्कृति की पहचान रामलीला को कोई समाप्त नहीं कर सकता तो शास्त्रीय कला को कैसे समाप्त कर सकता है। हमारी संस्कृति की जड़ें बहुत मजबूत हैं।