शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

शहनाई को कैसे मिलेंगे 2.5 लाख, अभी तक गाइडलाइन नहीं

केंद्र सरकार ने शादी वाले परिवार को अकाउंट से ढाई लाख रुपए तक निकाल सकने की परमिशन देकर बड़ी राहत दी थी, लेकिन घोषणा के 24 घंटे बीत जाने के बावजूद इस बारे में कोई गाइडलाइन नहीं बन सकी है. इस वजह से लोगों की परेशानी अभी भी बनी हुई है.
पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से 500 और 1000 रुपए के नोट बंद करने के बाद से लोगों को बेहद परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. बैंक और एटीएम के बाहर कैश के लिए लोगों को कई कई घंटे तक लाइन में लगना पड़ रहा है.

सरकार के इस फैसले से शादी वाले घर के लोग कुछ ज्यादा ही परेशान थे, इन परिवारों को चिंता सता रही थी कि आखिर उनकी बेटी या बेटे की शादी कैसे होगी. गुरुवार को केंद्र सरकार ने इन परिवारों को ढाई लाख रुपए निकाल सकने की परमिशन दी, इससे यह परिवार राहत महसूस कर रहे थे, लेकिन हैरानी की बात है कि घोषणा के 24 घंटे बीत जाने के बावजूद इस बारे में कोई गाइडलाइन नहीं बनाई जा सकी है.
शादी वाले परिवार आज जब बैंक से घोषणा के मुताबिक ढाई लाख रुपए निकालने के लिए पहुंचे तो उन्हें पैसे देने से मना कर दिया. वजह बताई गई कि अभी तक हमें किसी भी तरह का निर्देश नहीं मिला है. इस बारे में जब हमने कुछ बैंकों से बात की तो उन्होंने कहा कि अभी दिशानिर्देश नहीं आया है.
भारतीय स्टेट बैंक और सिंडिकेट बैंक के अधिकारियों ने बताया कि अभी तक उन्हें कोई निर्देश नहीं मिले हैं कि किस तरह लोगों को पैसे दिए जाएं. आरबीआई की प्रवक्ता ने बताया कि शादी के लिए ढाई लाख रुपए देने के लिए गाइडलाइन तैयार की जा रही है, जैसी ही तैयार हो जाएगी यह वेबसाइट पर होगी.

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

यमुना तट पर शरदोत्सव

 ....बही काव्य की रसधारा 
राजधानी दिल्ली के यमुना तट पर बने सूरघाट पर गत 9 अक्तूबर की रात काव्य की ऐसी धारा बही कि लोग सबकुछ भुलाकर आधी रात तक वहीं डटे रहे। अवसर था, संस्कार भारती, दिल्ली द्वारा आयोजित ‘शरद काव्योत्सव’ का। महर्षि बाल्मीकि जयंती एवं शरद पूर्णिमा के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में मंत्रमुग्ध कर देने वाली कविताओं के पाठ के साथ-साथ सुप्रसिद्ध कवि श्री ओम अम्बर को ‘पू. गुरु गोलवलकर काव्य पुरस्कार’ एवं श्री नरेश शाण्डिल्य को ‘श्री गोपाल कृष्ण अरोड़ा स्मृति सम्मान’ से सम्मानित किया गया। 
कविता पाठ करते हुए श्री गजेन्द्र सोलंकी तथा मंचस्थ कविगण
कार्यक्रम का शुभारम्भ अध्यक्षता कर रहे दिल्ली के पूर्व राज्यपाल श्री विजय कपूर, संस्कार भारती के अ.भा. संरक्षक श्री योगेन्द्र उपाख्य ‘बाबा’, स्वागताध्यक्ष श्री रोशनलाल गोरखपुरिया एवं दिल्ली की महापौर श्रीमती रजनी अब्बी द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। तत्पश्चात संस्कार भारती के कार्यकर्ताओं ने मधुर संगीत के साथ ध्येय गीत ‘साधयति संस्कार भारती, भारते नवजीवनम्’ का गान किया। इसके बाद अतिथियों ने सुप्रसिद्ध कवि श्री ओम अम्बर को स्मृति चिह्न, शाल, श्रीफल एवं 11 हजार रुपए देकर ‘पू. गुरु गोलवलकर काव्य पुरस्कार’ से सम्मानित किया। इसी तरह श्री नरेश शाण्डिल्य को भी ‘श्री गोपाल कृष्ण अरोड़ा स्मृति सम्मान’ देकर सम्मानित किया गया। तदुपरांत श्री विजय कपूर ने अपने संबोधन में कहा कि आज देश के सामने विश्वास का बहुत बड़ा संकट है। विश्वास का वातावरण समाप्त हो गया है। परन्तु आज से 50 साल पहले यह संकट हमारे सामने नहीं था। समाज में विश्वास को जागृत करना आज बहुत बड़ी चुनौती है, लेकिन आधुनिक समाज में विश्वास बहुत जरूरी है। श्री योगेन्द्र उपाख्य ‘बाबा’ ने उपस्थित गण्यमान्य नागरिकों का अभिनंदन करते हुए कहा कि शरद पूर्णिमा की इस बेला में आज आसमान से अमृत की वर्षा होगी, जो हम पर बरसेगा। हमें भारतमाता के सपूतों का जगाने का श्रेष्ठ कार्य मिला है, जिसे हम पूरी तन्मयता से कर रहे हैं। इस अवसर पर संस्कार भारती के अ.भा. सह-संगठन मंत्री श्री अमीरचंद, आदि सहित बड़ी संख्या में दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों से आए काव्य प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन संस्कार भारती, दिल्ली के मंत्री (संगठन) श्री जितेन्द्र मेहता ने किया। 
औपचारिक कार्यक्रम के बाद कवि सम्मेलन हेतु मंच प्रसिद्ध कवि श्री राजेश जैन ‘चेतन’ को सौंप दिया। इसके बाद हंसी-ठहाके का जो क्रम शुरू किया, वह आधी रात तक यूं ही चलता रहा। कवियों ने देशभक्ति, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, अवैध घुसपैठ आदि से संबंधित कविताओं का ह्दय को छू जाने वाला पाठ किया। कवियों में प्रसिद्ध कवि श्री गजेन्द्र सोलंकी, भोपाल से आए श्री मदन मोहन ‘समर’, सरदार मंजीत सिंह, सुश्री ऋतु गोयल विशेष रूप से थे। श्री गजेन्द्र सोलंकी की कविता ‘युगों-युगों तक इस धरती पर भारत मां की शान रहे’, ‘बचा लो अपना हिन्दुस्थान’ एवं श्री मदन मोहन ‘समर’ की कविता ‘जब भारत की रक्षा करने हेतु खाकी वर्दी लाल हुई’ पर तो लोगों ने खूब तालियां बजाईं और कवियों का हौंसला बढ़ाया। 
   

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

संस्कृत को संबल देते ‘संस्कृत परिवार’


उत्कर्ष: भवान कथम अस्ति।
प्रणव: अहं सम्यक अस्मि।
उत्कर्ष: अस्मिन् वर्षे ग्रीष्मावकाशे अहम् आनन्दम् अकरोम्। तबलावादनम् अवगच्छम् अपि च केभ्यश्चित् दिनेभ्यः मातृपितृभ्यां भ्राताभगिनीभ्यां च सह नैनीतालं भ्रमणार्थम् अगच्छम्। भवान् किम अकरोत्? 
प्रणवः अहम् तु अवकाशेऽस्मिन् क्रिकेटक्रीड़ायाः प्रशिक्षणम् ग्रहणम् अकरोम्। कुत्रापित भ्रमणार्थं न अगच्छम। आगामिमासे विद्यालयस्य क्रिकेटदलस्य चयनं भविष्यति, अतएव केवलं क्रिकेटप्रशिक्षणे एव ध्यानं दत्तवान्। अहम् वांछामि यत् मम चयनमपि विद्यालयस्य क्रिकेटदले भवतु। 
संस्कृत में यह बातचीत कक्षा 6 में पढ़ने वाले उत्कर्ष तथा कक्षा 3 में पढ़ने वाले प्रणव की है। उत्कर्ष ने प्रणव से पूछा, आप कैसे हैं? प्रणव ने कहा मैं ठीक हूं। उत्कर्ष ने कहा इस साल गर्मियों की छुट्टियों में मैंने बहुत मजा किया। तबला बजाना सीखा और कुछ दिन के लिए माता-पिता और भाई-बहन के साथ नैनीताल घूमने गया। आपने क्या किया? प्रणव बोला मैंने तो इन छुट्टियों में क्रिकेट की कोचिंग ली, कहीं घूमने नहीं जा सका। अगले महीने स्कूल की क्रिकेट टीम का चयन होना है, इसलिए मैंने सिर्फ क्रिकेट की कोचिंग पर ही ध्यान दिया। मैं चाहता हूं कि मेरा चयन भी स्कूल की क्रिकेट टीम में हो जाए। 
          दो बच्चों के बीच की यह बातचीत संस्कृत की किसी किताब के अध्याय का हिस्सा नहीं है और न ही संस्कृत के किसी कार्यक्रम में प्रस्तुत किए गए संस्कृत के नाट्य का भाग, बल्कि यह दोनों बालक संस्कृत में बातचीत करते हुए साक्षात देखे गए। जिस तरह हम हिन्दी या अपनी प्रादेशिक भाषा में सहजता के साथ बातचीत करते हैं ठीक उसी तरह यह दोनों संस्कृत में बात कर रहे थे। केवल उत्कर्ष और प्रणव ही नहीं, अपितु इनके जैसे अनेकों बच्चे और उनके अभिभावक संस्कृत में बातचीत करते दिखाई दिए। यह दृश्य दिल्ली के कर्मपुरा में हुए संस्कृत परिवारों के मिलन का है। करीब 20 संस्कृत परिवार इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए, जिनमें बुजुर्ग, महिलाएं, और बच्चे सभी थे। इन परिवारों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा माना हुआ है और यह लोग घर में संस्कृत में ही बात करते हैं।
          ऐसे समय में जहां हर ओर अंग्रेजी का बोलबाला है और हर अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी बोलने में महारत हासिल कराना चाहता है। एक संशय मन में था कि कहां यह लोग अपने घरों में संस्कृत बोलते होंगे? लेकिन जब 2 साल की आदिश्री अपने पिता श्री विनायक हेगड़े के साथ संस्कृत में बात करते हुए दिखाई दी तो मन का सारा संशय समाप्त हो गया। जिस उम्र में बच्चा ठीक से बोलना भी नहीं सीख पाता, आदिश्री अपने पिता के साथ सहज होकर संस्कृत में बात कर रही थी। पिता-पुत्री की बातचीत दर्शा रही थी कि वास्तव में यह परिवार संस्कृत के प्रति गंभीर हैं और इसको बलवती बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। आदिश्री और उसके पिता की बातचीत कुछ इस तरह थी-
आदिश्री से बात करते हुए विनायक हेगड़े 

विनायक हेगड़े : बिडाल आगतः पश्यतु (बिल्ली आई देखो)  
आदिश्री : आम्-आम् बिडालः तृणं खादितुम् गतवान् (हां-हां बिल्ली घास खाने गई)
विनायक हेगड़े : न. न. बिडालः तृणं न खादति, सः मूशकं खादति (बिल्ली घास नहीं, चूहा खाती है)
आदिश्री : तात! वाताटं दर्षयतु (पिताजी मुझे पतंग दिखाओ)
संस्कृत के प्रति लगाव और इसे मातृभाषा बनाने तथा घर में संस्कृत में ही बातचीत करने के संबंध में श्री विनायक हेगड़े ने कहा कि हम भारतीय संस्कृति में विश्वास रखते हैं और भारतीय संस्कृति जितनी प्रबल है, उतनी शायद ही कोई और हो। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा से जितनी नैतिक शिक्षा मिल सकती है, उतनी किसी और भाषा से नहीं मिल सकती। और संस्कृत पढ़ने वाला बच्चा जीवन में कभी भी पिछड़ नहीं सकता,  क्यूंकि वह अनुशासित और संस्कारवान होता है। 



शनिवार, 14 मई 2011

धर्मनिरपेक्षता के नाम, सरस्वती वंदना कुर्बान


देवी सरस्वती

शिक्षा के मंदिर कहे जाने स्कूलों में होने वाली सरस्वती वंदना, जिसे ज्ञान की देवी कहा जाता है की धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कुर्बानी दे दी गई है। यह वाकया अजमेर में केन्द्रीय विद्यालय संगठन के स्कूलों- केन्द्रीय विद्यालय नः1 और 2 का है। यहां अब वार्षिकोत्सव तथा अन्य कार्यक्रमों में होने वाली सरस्वती वंदना नहीं होगी। सरस्वती वंदना पर रोक का यह निर्णय अजमेर में सक्रिय रेशनलिस्ट सोसायटी की आपत्ति के बाद लिया गया। निर्णय के बाद स्कूलों ने अपनी वेबसाइट से देवी सरस्वती का चित्र भी हटा लिया है। इस संबंध में रेशनलिस्ट सोसायटी के अध्यक्ष बी.एल. यादव का कहना है कि हमारी योजना केवल इन दो स्कूलों या केन्द्रीय विद्यालय संगठन के स्कूलों तक सीमित नहीं है। हम देश के सभी सरकारी तथा सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में इस तरह की किसी भी गतिविधि का विरोध करेंगे। इसके लिए हमने केन्द्रीय विद्यालय संगठन, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा राजस्थान बोर्ड के मुख्य सचिव (शिक्षा) को भी पत्र लिखा है। उनका कहना है कि विद्यालयों में हर मत-पंथ के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं, इसलिए किसी धर्म विशेष को ज्यादा अहमियत देने से देश की सेकुलर छवि धूमिल होगी।
अजमेर के इन स्कूलों में सरस्वती वंदना पर लगी रोक के बाद से ही इस निर्णय के विरोध में आवाजें उठने लगी हैं। 7 मई को शहर में छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने इस निर्णय के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया तथा सरस्वती वंदना को लेकर आपत्ति करने वाले रेशनलिस्ट सोसायटी के अध्यक्ष बी.एल. यादव का पुतला फूंका। अभाविप ने जिला अधिकारी मंजू यादव को ज्ञापन सौंपकर बी.एल. यादव के विरुद्ध कार्रवाई करने तथा स्कूलों में सरस्वती वंदना फिर से शुरू कराने की मांग की। केन्द्रीय विद्यालयों में सरस्वती वंदना पर रोक के निर्णय को निंदनीय बताते हुए अभाविप राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सुनील बंसल ने कहा कि सरस्वती वंदना पर रोक का यह प्रसंग निंदनीय है तथा संस्कार के माध्यमों को समाप्त करने का एक घृणित प्रयास है। उन्होंने कहा कि भारत में मां सरस्वती को कभी किसी मत-पंथ से जोड़कर नहीं देखा गया। इसे हमेशा ही ज्ञान और विद्या की देवी के रूप में पूजा जाता रहा है। श्री बंसल ने कहा कि सरस्वती वंदना पर तो कभी किसी मुसलमान या ईसाई ने भी आपत्ति नहीं जताई, लेकिन कुछ तथाकथित सेकुलरवादी दूषित मानसिकता के चलते ऐसा करते हैं।
       निर्णय पर आश्चर्य प्रकट करते हुए शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के राष्ट्रीय सह-संयोजक अतुल कोठारी ने कहा कि सरस्वती वंदना में उन सभी गुणों (तेजस्वी, बुद्धिमान, बलषाली आदि) का वर्णन है, जो बालक में होने चाहिए। इसमें पंथ-सम्प्रदाय जैसी कोई बात नहीं है, इसलिए सरस्वती वंदना को किसी पंथ-सम्प्रदाय से जोड़कर देखना ठीक नहीं है। देश के स्कूलों में बड़े पैमाने पर इसका गायन किया जाता है। और तो और अनेक मुस्लिम संगीतकार भी सरस्वती वंदना करते हैं। अगर इसमें किसी पंथ विशेष की बात होती तो क्या मुस्लिम बंधु सरस्वती वंदना करते? यह सोचने का विषय है। सरस्वती वंदना का विरोध करना घृणित कृत्य है तथा बच्चों को संस्कारों से दूर रखने की साजिश है।
      नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर एक अन्य केन्द्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य ने बताया कि व्यक्तिगत रूप से मैं तो चाहता हूं कि सरस्वती वंदना हो, लेकिन देश के पंथ-निरपेक्ष होने का हवाला देकर इस तरह के लोग बच्चों को संस्कारवान बनने से रोक देना चाहते हैं। वहीं रोहिणी (दिल्ली) स्थित माउंट आबू पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्य ज्योति का कहना है कि मां सरस्वती ज्ञान की देवी तथा सद्बुद्धि की दाता हैं। इससे मन को शांति मिलती है। झंडेवालान स्थित सरस्वती विद्या मंदिर के प्रधानाचार्य उपेन्द्र शास्त्री का कहना है कि सरस्वती वंदना का विरोध करने वाले लोगों को संकीर्णता की भावना से ऊपर उठना चाहिए।



रविवार, 12 दिसंबर 2010

शास्त्रीय कला के नन्हे प्रेमी

राष्ट्रमंडल खेलों  के उद्घाटन समारोह में
तबला वादन करता हुआ बालक केशव
विगत 3 अक्तूबर, 2010 को नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में सम्पन्न हुए 19वें राष्ट्रमंडल खेल के उद्घाटन समारोह की देश-विदेश में खूब सराहना हुई। समारोह में प्रस्तुत किये गये भारतीय संस्कृति को दर्शाते हुये सांस्कृतिक कार्यक्रमों को तो दर्शकों ने पसंद किया ही, इसके अलावा 7 साल के बालक केशव द्वारा किये गये तबला वादन को भी लोगों ने खूब सराहा। नन्हे केशव ने तबला इतना कमाल का बजाया कि इसकी चर्चा समारोह के 2-3 दिन बाद तक रही। 7 साल के इस बालक द्वारा समारोह में सबकुछ भुलाकर तल्लीनता के साथ तबला वादन करने से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि आज की पीढ़ी में भी अपने देश की संस्कृति की पहचान शास्त्रीय गीत-संगीत और नृत्य के प्रति अपार जिज्ञासा है। जोकि इसे सीखना और समझना चाहती है।
    उद्घाटन समारोह में अपने तबला वादन से सबका मन मोह लेने वाला बालक केशव आरोविला (पांडिचेरी) के दीपरम् स्कूल में कक्षा- दो का छात्र है। वह दो साल की आयु से तबला बजना सीख रहा है। उसकी बहन 11 वर्षीय कामाक्षी भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रही है। हालांकि इन दोनों भाई-बहन को संगीत विरासत में मिला है। इनकी नानी श्रीमती प्रफुल्ला दानुकर जानी-मानी गायिका हैं। परन्तु फिर भी जिस आयु में बच्चे खेलने-कूदने, वीडियों गेम और न जाने किन-किन बातों में अपना समय बिताते हैं उस आयु में ये शास्त्रीय संगीत सीखकर अपनी संस्कृति का पोषण ही कर रहे हैं। लेकिन ऐसे बच्चों की भी देश में कोई कमी नहीं है जिन्हें शास्त्रीय गीत-संगीत और नृत्य विरासत में नहीं मिला, फिर भी वे पूरी लगन और तन्मयता से उन्हें सीख रहे हैं।

भरतनाट्यम की मनमोहक मुद्रा में
युक्ति और नंदिनी 

   राजधानी दिल्ली के पंजाबी बाग स्थित हंसराज मॉडल स्कूल में कक्षा 7 में पढ़ने वाली युक्ति और कक्षा 5 में पढ़ने वाली नंदिनी दोनों सगी बहनें हैं। दोनों ही पिछले 5 साल से दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य ‘भरतनाट्यम’ को सीख रही हैं। मूल रूप से तमिलनाडु की न होने के बावजूद भी इनका भरतनाट्यम के प्रति अपार प्रेम है। भरतनाट्यम के प्रति अपनी अथाह श्रद्धा के बारे में बताते हुये युक्ति कहती है कि हमारा देश बहुत बड़ा है और हमारे देश की पहचान विभिन्न प्रकार के शास्त्रीय गीत-संगीत और नृत्य हैं। मुझे अपने देष और संस्कृति से बहुत प्यार है, इसलिए मैंने और मेरी बहन ने भरतनाट्यम सीखने का निश्चय किया। वह कहती है कि शास्त्रीय नृत्यों को सीखने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए सभी को तो हम एक साथ सीख नहीं सकते। वर्तमान में बच्चों द्वारा सीखे जाने वाले आधुनिक नृत्य के बारे में बताते हुए युक्ति कहती है कि अगर कोई भी शास्त्रीय नृत्य हम अच्छी प्रकार से सीख लें तो ऐसे ‘डांस’ सीखने में हमें जरा भी समय नहीं लगेगा। युक्ति और नंदिनी के पिता श्री देवेन्द्र खन्ना जोकि एक सरकारी विद्यालय में शिक्षक हैं का कहना है कि बच्चों में अपने देश और संस्कृति के प्रति प्यार देखकर मैं बहुत खुष हैं। वहीं दक्षिणी दिल्ली के साकेत स्थित ज्ञान भारती विद्यालय की कक्षा 6 की छात्रा मेदिका शेखर पिछले 5 साल से उत्तर भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य ‘कथक’ की शिक्षा ले रही है। अब तक वह विभिन्न प्रतियोगिता और आयोजनों में अपने नृत्य की प्रस्तुति दे चुकी है। कथक के प्रति विशेष लगाव के बारे में बताते हुये वह कहती है कि मेरी ‘डांस’ में बहुत रुचि थी, मेरी इस रुचि को देखकर मेरे माता-पिता ने नजदीक के ‘डांस क्लासेज’ में मेरा दाखिला करा दिया। वहां अनेक प्रकार के शास्त्रीय नृत्य सिखाए जाते थे। मुझे कथक अच्छा लगा, इसलिए मैंने इसे सीखना शुरू किया। मेदिका ने कहा कि शास्त्रीय नृत्य हमारे ‘कल्चर’ (संस्कृति) से जुड़े हुये हैं, इसलिए इन्हें सीखने पर हमें अपने ‘कल्चर’ को जानने का मौका भी मिलता है।

ओडिसी नृत्य करती हुई
पीहू श्रीवास्तव
नोएडा के प्रसिद्ध एमिटी इंटरनेशल स्कूल की कक्षा 5 में पढ़ने वाली 11 साल की पीहू श्रीवास्तव विगत 6 साल से उड़ीसा के प्रसिद्ध नृत्य ‘ओडिसी’ को सीख रही है। पीहू का कहना है कि वह एक अच्छी ‘डांसर’ बनना चाहती है। पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार स्थित विवेकानंद विद्यालय की कक्षा 12 में पढ़ने वाला छात्र अमन ओबराय पिछले तीन साल से तबला और हारमोनियम सीख रहा है। अमन का कहना है कि सभी प्रकार के संगीतों का आधार शास्त्रीय संगीत ही है, इसलिए उसने कोई और वाद्य सीखने की बजाय तबला और हारमोनियम बजाना सीखना शुरू किया।
      वर्तमान पीढ़ी में शास्त्रीय कला की ओर बढ़ते रुझान पर प्रकाश डालते हुए प्रख्यात कथक नृत्यांगनाएं- नलिनी-कमलिनी, जोकि सगी बहनें हैं और भारत सहित विश्व के अनेक देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं तथा जिन्हें राष्ट्रपति सम्मान सहित ढेरों सम्मान मिल चुके हैं कहती हैं कि आज की पीढ़ी में शास्त्रीय नृत्य के प्रति बहुत रुझान है, यह केवल भारत ही नहीं अपितु विदेशों में भी है। विदेशों में इसके प्रति ज्यादा रुझान है, क्योंकि उनके लिए यह नया है। इस रुझान के पीछे का मुख्य कारण यह है कि जब वे अच्छे और तज्ञ कलाकारों को नृत्य करते हुए देखते हैं तो उनके मन में यह भाव उत्पन्न होता है कि वे भी ऐसा करें। इसके अलावा पारिवारिक संस्कार और संस्कृति के प्रति प्रेम भी इसकी ओर आकर्षित होने में प्रेरणा प्रदान करते हैं। लेकिन तज्ञ और अच्छा कलाकार बनने के लिए बहुत साधना करनी पड़ती है। जो साधना और मेहनत करने के लिए तैयार हो जाते हैं वे ही इसको सीख पाते हैं।

प्रख्यात कथक नृत्यांगनाएं
नलिनी-कमलिनी
वे कहती हैं कि शास्त्रीय नृत्य हमारी परम्पराओं से जुड़ा हुआ है, वह हमारी भारतीय संस्कृति और जीवन का अंग है। जिसमें हम पल्लवित हुए हैं। आधुनिक नृत्य हमारा नहीं है, क्षणिक बदलाव के लिए हम उसे जरूर अपना सकते हैं। उदाहरण के तौर पर हम कैसा भी खाना खा लें, वह हमें तृप्त नहीं कर सकता। लेकिन जब हम रोटी खाते हैं तो वह हमारी भूख शांत करने के साथ-साथ हमें तृप्त करती है, आनंदित करती है। इसलिए यदि हमें तृप्त होना है तो अपनी संस्कृति से जुड़ना होगा। क्योंकि हम उसी में पल्लवित हुए हैं। विदेशों में रहने वाले भारत के अनेक लोगों को अपने देश की कमियों के बारे में पता होगा, लेकिन फिर भी वे अपनी संस्कृति से जुड़े हुए हैं, क्योंकि उनको लगता है कि वह उनका देश है। नलिनी-कमलिनी कहती हैं कि सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति की अलग पहचान है। हमारी संस्कृति बहुत प्राचीनतम है। जिससे कुछ न कुछ शिक्षा ही मिलती है। इसलिए आधुनिक नृत्य बदलाव के लिए ठीक हैं, परन्तु वह भी कहीं न कहीं शास्त्रीय नृत्य से ही जुड़े हुए हैं। वैसे बच्चों को आप जैसा रूप देना चाहें, वे वैसा बन जाते हैं। उन्हें तराशना पड़ता है। इसकी शुरुआत परिवार से ही होती है। छोटे बच्चे वातावरण को देखकर सीखते हैं, उस पर परिवार के संस्कारों का बहुत प्रभाव पड़ता है। वे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, हम उन्हें जैसा तराशना चाहें तराश सकते हैं। हम जितनी संस्कृति निभाएंगे, बच्चे उतने ही संस्कार निभाएंगे। भारत और विदेशों में शास्त्रीय नृत्य को देखकर लोग खुश होते हैं, उनके मन में इसके प्रति बेहद सम्मान है। युवा तो इसकी बहुत सराहना करते हैं। वैसे अच्छी चीज हर किसी को आकर्षित करती है। सुंदर और बदसूरत में कोई भी अंतर कर सकता है। परन्तु अच्छा करने के लिए साधना करनी पड़ती है, मेहनत करनी पड़ती है। वे कहती हैं कि शास्त्रीय कला का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। जिस प्रकार सोने की चमक लंबे समय तक कम नहीं होती, उसी प्रकार शास्त्रीय कला को सीमा में नहीं बांधा जा सकता। इसकी पहचान विश्वस्तीय है। दिल्ली में हो रही रामलीलाओं में हर प्रकार के लोग आते हैं, गरीब से गरीब भी और अमीर से अमीर भी। सब लोग रामलीला के बारे में जानते हैं, हर वर्ष देखते हैं फिर भी इसके दर्शकों की संख्या में कमी नहीं होती। और जब भारत की संस्कृति की पहचान रामलीला को कोई समाप्त नहीं कर सकता तो शास्त्रीय कला को कैसे समाप्त कर सकता है। हमारी संस्कृति की जड़ें बहुत मजबूत हैं।